तेनालीराम का हिस्सा
विजय
नगर के राजा कृष्णदेवराय जब युद्ध में विजयी होकर लौटे तो उन्होंने सभी
दरबारियों को एक शानदार दावत दी और महल के एक कोने में नाना प्रकार के
उपहारों का ढेर लगा दिया। उन्होंने दरबारियों से कहा कि दावत के बाद
उपहारों के ढेर में से जिसको जो चीज पसंद आए, ले जाए।
दरबारियों ने राजा की आज्ञा का पालन किया। इत्तेफाक से उस दिन तेनालीराम दरबार में देर से आए। उपहार भी लगभग समाप्त हो चुके थे। मात्र चांदी की एक तश्तरी बची थी।
‘’ दरबार में उपस्थित होकर तेनालीराम ने देर से पहुंचने के लिए राजा से क्षमा मांगी और दावत उड़ाने लगे। जब दावत खा चुके, तब दरबारियों में से एक ने तश्तरी की ओर इशारा करते हुए व्यंग्यात्मक लहजे में तेनालीराम से कहा, ‘यह तुम्हारा हिस्सा है।’ तेनालीराम ने वह तश्तरी उठा ली और अपने अंगरखे में छिपा ली। राजा ने तेनालीराम को ऐसा करते देखकर पूछा, ‘तेनाली! तुमने यह तश्तरी अंगरखे में क्यों छिपा ली? सबकी तरह तुम भी इस उपहार को खुले में लेकर जाओ।’
इस पर चतुर तेनाली राम ने कहा, ‘महाराज! आज तक मैं दरबार से थाली भरकर उपहार लेकर जाता रहा हूं। लेकिन इस तश्तरी को खाली ले जाते वक्त मुझे आपकी इज्जत का ख्याल रहेगा। क्योंकि लोग कहेंगे कि तेनालीराम को राजा ने एक तश्तरी दी और वह भी खाली। इसीलिए मैंने इसे मैंने इसे अपने अंगरखे में छिपा लिया है।’
तेनालीराम की बुद्धिमत्ता से राजा कृष्णदेवराय बहुत प्रसन्न हुए और अपने गले में पड़ा मुक्ताकहार उतारकर उनकी तश्तरी में डाल दिया।
दरबारियों ने राजा की आज्ञा का पालन किया। इत्तेफाक से उस दिन तेनालीराम दरबार में देर से आए। उपहार भी लगभग समाप्त हो चुके थे। मात्र चांदी की एक तश्तरी बची थी।
‘’ दरबार में उपस्थित होकर तेनालीराम ने देर से पहुंचने के लिए राजा से क्षमा मांगी और दावत उड़ाने लगे। जब दावत खा चुके, तब दरबारियों में से एक ने तश्तरी की ओर इशारा करते हुए व्यंग्यात्मक लहजे में तेनालीराम से कहा, ‘यह तुम्हारा हिस्सा है।’ तेनालीराम ने वह तश्तरी उठा ली और अपने अंगरखे में छिपा ली। राजा ने तेनालीराम को ऐसा करते देखकर पूछा, ‘तेनाली! तुमने यह तश्तरी अंगरखे में क्यों छिपा ली? सबकी तरह तुम भी इस उपहार को खुले में लेकर जाओ।’
इस पर चतुर तेनाली राम ने कहा, ‘महाराज! आज तक मैं दरबार से थाली भरकर उपहार लेकर जाता रहा हूं। लेकिन इस तश्तरी को खाली ले जाते वक्त मुझे आपकी इज्जत का ख्याल रहेगा। क्योंकि लोग कहेंगे कि तेनालीराम को राजा ने एक तश्तरी दी और वह भी खाली। इसीलिए मैंने इसे मैंने इसे अपने अंगरखे में छिपा लिया है।’
तेनालीराम की बुद्धिमत्ता से राजा कृष्णदेवराय बहुत प्रसन्न हुए और अपने गले में पड़ा मुक्ताकहार उतारकर उनकी तश्तरी में डाल दिया।
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